Friday, August 29, 2025

समय महान है

विजय लक्ष्य प्राप्ति
की ललक में
बन रहा शैलीन चरित्र का त्यागी
चाल-चलन हैं विद्रोह के
जैसे बीहड़ के बेताब बाग़ी

तीव्र हो रहा तेरा अभ्यास
ज्वाला की गर्जना
को धारण कर
सोच हो रही ऐसे प्रज्वल
जैसे रक्त में बहुबाँटी
बहे जल प्रपात-सा वेग

टप टप परिश्रम कर इस अनल में
उमड़ उठे ग्रीष्म काल में मेघ

पर संसार का संरक्षक
यही कहे
कि शीघ्रता में करके विलीन्
सफलता न हो समीप

ना बन कठोर अपने आप से
नम्र होने दे दोनों नयन
बूंद-बूंद को पीर कर,
पीछे रखे पद चिह्न को देख
पाए अनुभव को कर ग्रहण

होती है तेरी वृद्धि तब भी
आता प्रयास के अंत में विराम जब भी
पतन के पथ में बस रह जाता है अभिमान
विफलता से न होता कोई अपमान

करता रहे जतन धीरे-धीरे
क्योंकि व्यक्ति को बनाता है समय महान!

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